भूमिका भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों की एक समृद्ध परंपरा रही है, जिनका उद्देश्य केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि मानसिक, शारीरिक और सामाजिक शुद्धि भी होता है। इसी परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है — एकादशी व्रत । ‘एकादशी’ संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है — "ग्यारहवां"। हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर पक्ष (शुक्ल और कृष्ण) का ग्यारहवां दिन एकादशी कहलाता है। इस प्रकार एक वर्ष में लगभग 24 एकादशी आती हैं और अधिमास होने पर यह संख्या 26 तक पहुँच सकती है। एकादशी का धार्मिक महत्व एकादशी को भगवान विष्णु का प्रिय दिन माना गया है। यह दिन विष्णु भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र होता है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भागवत पुराण, गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथों में एकादशी व्रत की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। कहा गया है कि एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकादशी का मूल उद्देश्य है – इंद्रियों पर नियंत्रण, मन की स्थिरता, और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण । इस दिन व्यक्ति अन्न का त्याग करता है, जिससे तन और मन दोनो...
संकट निवृत्ति के लिए:
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिये:
तत् आरम्भ नन्दस्य बृज: सर्वसमृध्दिमान।
हरेनि्वासात्मगुणे: रमार्कीडामभुत्रृप।।
वर प्राप्ति के लिये:
कल्यायनि. महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नंदगोपसचतं देवी पतिं मे कुरु मे नमः।
विध्या प्राप्ति के लिये:
मां शारदे नमस्तुभ्य काश्मीरपुरवासिनी।
चामहं प्रार्थये नित्यं विद्या दान्ण्च देसी में।।
सर्वत्र विजय प्राप्ति के लिये:
विजयाभीमुखा राजा श्रत्वैतदभियाति यान्।।
बर्लि तस्मै हरन्त्यर्गे राजान: पृथवे राधा।
भगवतप्राप्ति के लिये:
हानाथ रमण र्पेष्ठ क्वासि -क्वासि महाभुज।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिये:
तत् आरम्भ नन्दस्य बृज: सर्वसमृध्दिमान।
हरेनि्वासात्मगुणे: रमार्कीडामभुत्रृप।।
वर प्राप्ति के लिये:
कल्यायनि. महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नंदगोपसचतं देवी पतिं मे कुरु मे नमः।
विध्या प्राप्ति के लिये:
मां शारदे नमस्तुभ्य काश्मीरपुरवासिनी।
चामहं प्रार्थये नित्यं विद्या दान्ण्च देसी में।।
सर्वत्र विजय प्राप्ति के लिये:
विजयाभीमुखा राजा श्रत्वैतदभियाति यान्।।
बर्लि तस्मै हरन्त्यर्गे राजान: पृथवे राधा।
भगवतप्राप्ति के लिये:
हानाथ रमण र्पेष्ठ क्वासि -क्वासि महाभुज।
दास्यास्ते कृपणता में सके दर्शय सात्रिधिम्।।
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